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यस आई एम–3 [साइको किलर]

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रात का समय था। लगभाग बारह बज चुके थे। आज का मौसम अपने अलग ही परवान पर था। कुछ देर पहले आसमान अंधेरे में भी किसी नीले मानिक की तरह चमक रहा था। पल भर में उस पर मौत से घने काले बादलों ने चांद पर ग्रहण लगा दिया।

देखते ही देखते बादलों ने आसमां को पूरी तरह से अपने अन्दर समा लिया। मौसम के इस तरह से बदलते हुए मिजाज का असर जंगल के पशु पक्षियों पर भी दिखाई देने लगा। होने वाली अनहोनी की आंशका को भांपते हुए सभी जानवर अपने अपने बिलों में जा कर दुबक गए।

अगले ही पल वातावरण में खामोशी ने घर कर लिया किसी अनहोनी की ओर संकेंत कर रही थी। काले घने बादलों से होती हुई भीषण आंधी चलने लगी, जो अपने साथ विशालकाय वृक्षों को भी ले जाने को आमंदा थी और साथ ही लाई थी भीषण बारिश।

धीरे धीरे मौसम में विचित्र सी मनहुसियत छाने लगी। जिसका बारिश के वक्त होने वाली उमस से कोई लेना देना नही था। वातावरण में छाई इस मनहूसियत, किसी को अनहोनी के लिए सचेत कर रही थी।

"छप्प छप्प.!" दूर से भागते हुए कदमों की आवाज सुनाई दी। जो धीरे धीरे दो जोड़ी कदमों की आवाज में तब्दील हो गई।

बादलों में अचानक से बिजली चमकी और उसी के साथ सड़क के घुमावदार हिस्से से आता हुआ एक साया दिखाई दिया। वह साया एक लड़की का था या फिर एक बेसहारा लड़की का। वह लड़की भागते हुए बार बार पीछे मुड़कर देख रही थी।

उसे देखकर लग रहा था मानो कोई शिकारी उसके पीछे पड़ा हुआ था। लगातार भागने की वजह से उसकी सांसे उखड़ने लगी थी। वह बीच रास्ते में रूक कर आराम करना चाहती थी पर उसके पीछे मंडरा रहा खतरा उसे आराम करने की अनुमति नहीं दे रहा था।

किस्मत भी उस बदकिस्मत लड़की के साथ नहीं थी। अगले ही पल उसे एक झटका लगा और वह सड़क पर औंधे मुंह जा गिरी। बड़ी मुश्किल से वह अपनी जगह पर बैठ गई। रास्ते में बना गड्ढा ने सारा काम खराब कर दिया। वह खड़ा होना चाहती थी पर मोच की वजह से हिलने डुलने में भी असमर्थ थी। बिजली कड़की और उसी के साथ लड़की ने अपने कानों को कस कर बंद कर लिया।

तभी उसे अपने पूछे से 6 फीट का साया आता हुआ महसूह हुआ जो काफी देर से उसके पीछे पड़ा हुआ था। वह साया बड़े बड़े कदमों के साथ उसकी ओर बढ़ रहा था। जैसे जैसे वह साया लड़की के पास आ रहा था वैसे वैसे ही लड़की अपनी जगह से घिसटते हुए सड़क के किनारे की तरफ जा रही थी। लड़की उस दरिंदे से बचने की लाख कोशिशें कर रही थी। पर उसकी सारी कोशिशें नाकामयाब साबित हो रही थी।

वहशी दरिंदा अपने चेहरे पर हैवानियत के भाव लिए हुए धीरे धीरे उसके करीब आ रहा था। कीचड़ की वजह से लड़की एक ही जगह पर घिसट रही थी। बावजूद इसके वह हिम्मत करके अपनी जगह से खड़ी हुई और वहां से भागने लगी और मुड़ते ही अपने पीछे खड़े हुए भारी भरकम पेड़ से जा टकराई। साया उसके बेहद करीब आ चुका था। उसने लड़की के बालों को बड़ी ही बेहरमी के साथ पकड़ा और उसे पेड़ के तने से दे मारा।

वह अब अपने बचने की सारी उम्मीदें खो चुकी थी। उसके चेहरे पर बेबसी और दर्द से मिले जुले भाव साफ नजर आ रहे थे। वह कोई प्रतिक्रिया व्यक्त कर पाती उस से पहले ही साए ने लड़की के कन्धों को बड़े ही खतरनाक तरीके से पकड़ा और धीरे धीरे उस की ओर बढ़ने लगा। जब वह किसी भूखे भेड़िए की तरह अपने चेहरे को लड़की के चेहरे के पास ले गया तब वह लड़की जाल में फंसे किसी मेमने की तरह छटपटाने लगी। साए का चेहरा लड़की के चेहरे के बेहद करीब आ चुका था इतना करीब कि साए को डर से सहमी हुई लड़की की सासों के साथ साथ दिल की धड़कने भी साफ सुनाई दे रही थी।

अप्रत्याशित रूप से अगले ही पल कुछ ऐसा हुआ जिसकी साए ने कभी कल्पना भी नहीं की थी। उस लड़की ने हिम्मत करते हुए हाथ में मौजूद डंडे को उसके सर पर दे मारा। वार इतना तेज था कि पहले ही वार में साया बेहोश हो कर जमीन पर गिर गया।

इन सबके बीच लड़की कीचड़ में अपने पैर की मदद से कीचड़ में कुछ ढूंढ रही थी। जैसे ही उसका किसी चीज से टक्कराया वैसे ही उसके चेहरे के भाव बदलने लगें। जिन्हें वह साया अपनी हवस के वसीभूत हो कर देख नही पाया। लड़की ने बड़ी ही सफाई से वह डंडा अपने हाथ तक पहुंचाया और फिर उसकी पकड़ ढीली पड़ने का इन्तजार करने लगी। पकड़ ढीली होते ही उसने मौके का फायदा उठाया और पूरी ताकत से डंडे को साए के सिर पर दे मारा।

साए के बेहोश होते ही लड़की ने खुद को सहज किया और फिर जोर जोर से हँसने लगी। हंसते हुए वह बहुत ही भयानक लग रही थी। कुछ देर हंसने के बाद वह अपने चेहरे के भावों को बदलते हुए बोली। "तुम्हें क्या लगता था तुम मुझे यहां लेकर आए। नही! ये बस तुम्हारा वहम था। तुम मुझे नही, मैं तुम्हें यहां लेकर आई। ठीक वैसे जैसे कोई शिकारी शिकार को अपने जाल में फंसाने से पहले करता है।"

अपनी बात पूरी करने के बाद वह लड़की वहां से इस तरह गायब हो गई मानो वह कभी वहां पर आई ही ना हो।

उसी सड़क पर सुबह दस बजे। एक पुलिस जीप बड़ी ही तेजी के साथ चली आ रही थी। जीप के अंदर दो शख्स बैठें हुए थे। ड्राइवर के पास वाली सीट पर एक पुलिस इंस्पेक्टर बैठा हुआ था वह कोई और नहीं बल्कि इंस्पेक्टर अभय था।

ड्राइविंग सीट पर एक प्रौढ़ उम्र का शख्स बड़ी बड़ी मूंछों और थुलथुले पेट के साथ एक कांस्टेबल बैठा हुआ था। कॉन्स्टेबल की यूनिफार्म पर उसका नाम लिखा हुआ था ‘रवि दुबे।’ शुरू से लेकर अभी तक चुप रहने वाले अभय ने मुंह खोलते हुए बोला। "कॉन्स्टेबल रवि दुबे! क्या ये वही जगह है जहां से सुबह सुबह हम लोगों को कॉल आई थी।"

कांस्टेबल दुबे ने ड्राइव करते हुए जवाब दिय। "जी सर! ये उसी जगह की लोकेशन है जो उस फोन कॉल वाले बन्दे ने मुझे बताई थी।"

अभय आगे कुछ पूछ पाता उस से पहले ही जीप एक जोरदार झटके के साथ रुक गई। अभय बड़ी मुश्किल से खुद को नियंत्रित करने में सक्षम हुआ। वह आग बबूला होते हुए बोला। "दुबे! नशा किया हुआ है क्या? जो तुमने इतनी तेज ब्रेक लगाए।"

"नही सर!" इतना कहते ही रवि दुबे ने तर्जनी अंगुली से सामने की ओर इशारा किया। अभय की आँखें इशारे का पीछा करते हुए उसी तरफ चली गई। जहां पर पर एक साइकिल के साथ एक वक्ति खड़ा हुआ था।

"सर.! इस बात के लिए माफी चाहूंगा।" अपनी गलती का भान होते ही दुबे ने कहा और फिर आगे बोला। "पर हम उस जगह पर पहुंच चुके है जिस जगह से हमें कॉल आई थी। देखो वो रहा वह शख्स जिसने कॉल की थी।" दुबे ने सड़क किनारे खड़े हुए व्यक्ति की तरफ इशारा किया।

अभय अपने रौबीले अंदाज में आदेश देते हुए बोला। "ठीक है! जीप को साइड में खड़ा कर दो। उसके बाद इन्वेस्टिकेशन से जुड़ा हुआ सारा सामान ले कर मेरे पास आ जाना। तब तक मै सामने खड़े हुए शख्स से जरूरी पुछताझ कर लूं।"

दुबे ने किसी वफादार कॉन्स्टेबल की तरह हां में गर्दन हिलाई। जवाब मिलते ही इंस्पेक्टर अभय जीप से उतर कर सामने खड़े हुए शख्स के पास चला गया। इंस्पेक्टर अभय ने सामने खड़े हुआ शख्स जो दिखने में एक आम नागरिक था, के पास पहुंचते ही पूछताछ करनी शूरू कर दी।

"क्या नाम है तुम्हरा?" अभय ने कड़क अंजदाज में पूछा।

शख्स ने जवाब दिया। "सर! मनोहर लाल।" उसकी आवाज में डर साफ़ झलक रहा था।

इंस्पेक्टर रावत रौब को बरकरार रखते हुए बोला। "डरने की कोई जरूरत नही है। जितना पूछा जाए उसका जवाब दो। जरुरी तहकीकात के बाद तुम्हें यहां से जाने दिया जाएगा।" अभय ने अपनी आवाज में अपनापन लाते हुए कहा।

मनोहर लाल ने सहज होते हुए जवाब दिया। "ठीक है साहब जी!"

अभय ने दूसरा सवाल पूछा। "तुमने इस लाश को कब देखा?"

"मैं इधर से अपने किसी जरुरी काम के लिए जा रहा था तभी मेरी नजर सड़क किनारे कीचड़ और खून से सनी हुई इस लाश पर पड़ी। लाश को देखते ही मैंने तुरन्त आपको कॉल कर दी। और फिर कहे अनुसार मैं यहां पर खड़ा होकर आप लोगों इंतजार करने लगा।" मनोहर ने जिम्मेदार नागरिक की तरह जवाब दिया।

"लाश किधर है?" जिसके जवाब में मनोहर वहां से कुछ दूरी पर पड़ी हुई लाश के पास इंस्पेक्टर अभय को ले गया।

"तुम अब जा सकते हो। जरूरत पड़ने पर तुम्हें दोबारा बुलाया जा सकता है।" इतना सुनते ही मनोहर वहां से चला गया। उसके वहां से जाते ही दुबे सामान लेकर लाश के पास पहुंच गया।

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जारी रहेगी...मुझे मालूम है आप सभी समीक्षा कर सकते है बस एक बार कोशिश तो कीजिए 🤗❤️ लाइक भी जरूर करें।

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11 Comments

hema mohril

25-Sep-2023 03:20 PM

Nice

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Shalu

07-Jan-2022 02:00 PM

Very good

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Horror lover

20-Dec-2021 12:19 PM

Good going

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